बड़ी भिन्नाट हो रही है, बड़े समय बाद अपने बिलागवतन में लोग इलाहाबाद के मीट का चूरमा बना रहे हैं , अफ़सोस त ई है कि हमहुं को वहां ना बुलाके इसके संयोजक लोगो बहुतै गलत काम किया और उस पर ये कि नामवर लोग वहां इकट्ठा थे उनमें एक ठो नामवर पर इतना समय और ऊर्जा खर्च कर रहे हैं कि सब मनई का पढ़ पढ़ के ऐसा लग रहा है कि हम संगम नहा लिये, ई सबको नहीं बुझाता है कि नामवर के बहाने लोग अपना अपना तीर छोड़ रहे है, क्या ब्लॉगजगत में सबको बुलाना सम्भव है..कुछ तो लोग छूट जाते तो इस तरह की बहस तो कुछ भी कर लो, उठनी ही थी...जो उठ रही है और आगे भी उठेगी इसे कोई रोक सकता है?
जिस बात की चर्चा सुरेश चिपलुनकर बाबू ने छेड़ी थी उ मुद्दा रह गया पीछे अरे वही वामपंथ और हिन्दूपंथ और मुद्दा बन गया नामवर, अरे कोई बताएगा कि कि हिन्दू हितों पर लिखने वाले लोगों को क्यौं नहीं बुलाया गया? ई सब छोड़िये अब यही बता दीजिये हमको उस सम्मेलन में क्यौं नहीं बुलाया गया कोई मेरे बारे मे बोलेगा?
नामवर जी ने अगर कभी कचरा कह भी दिया तो कोई ये भी बताए कि क्या ब्लॉग में सब सुगन्धित साहित्य ही रचा जा रहा है कौन तय करेगा कि सुगन्धित क्या है? और कचरा क्या है? और जो व्यक्ति एक दिन कचरा कहता है और वही आदमी कचरे के शीर्ष में आसन करना चाहता है तो इसमें बुराई क्या है?
चिट्ठा शब्द के बारे में अगर नामवर बोल दें कि यह शब्द हमारा दिया है तो उनके कहने से क्या उनका हो जाएगा? और अगर अपने किताब में इसका श्रेय ले लें तो क्या उनको कोई रोक पायेगा?
अरे सब चिट्ठाकार इलाहाबाद में भेंट मुलाकात किये एक दूसरे को आमने सामने ज़िन्दा देखा ये क्या कम है, और जब ब्लॉगवतन के लोग एक जगह इकट्ठा हो जाँय तो क्या बात होती है क्या ये भी किसी को बताना पड़ेगा?