Sunday, June 21, 2009

हमारे दौर में"..........




पिता बताते कि हमारे दौर में अंग्रेज़ों ने हमारे साथ क्या क्या किया ? माँ बताती की सूई भी उस ज़माने में जर्मनी से आती थी,आटा इतने का था कि सोना इतने का था कि चावल,गेहूँ और खाने का अनाज तो इतने में इतना आ जाता था,पिता कहते नेहरू ऐसे थे कि पटेल ऐसे थे,भगत सिंह ऐसे थे कि चंद्रशेखर ने जान दे दी पर अंग्रेज़ो के आगे झुके नहीं, हज़ारों लोगों ने जान दे दी बरसों तक संघर्ष किया तब जा के आज़ादी मिली, पिता कहते कि आज हम जो खुली हवा में सांस ले रहे है उसको पाने के लिये हमने भी पसीना बहाया है,हमारे यहां तो आज़ादी का जन्म ही खून और मार काट के साथ हुआ, तब हम सुकून भरे जीवन के बारे कल्पना भी कैसे कर सकते हैं,

जो भी चीज़ मैं लिख रहा हूँ जानता हूँ बहुत अव्यवस्थित है,पर आज जो मेरे मन में आ रहा है जैसा भी विचार उसे मैं, लिखने की कोशिश कर रहा हूँ,हो सकता है इसका सिर पैर ठीक से मिल न पाये पर ये भी है कि मैं कोई लिखाड़ तो हूँ नहीं,सजा के लिखना भी नहीं जानता पर इतना जानता हूँ कि दिल से निकली बात दिल तक पहुँचती है, सिर्फ़ इसी आशा के साथ अपने कुछ अनुभव लिखने बैठा हूँ। शहर में रहकर गाँव को याद करते हैं और गाँव में रहते हैं तो सोचते हैं कि ये शहर जैसा क्यौं नहीं है? शहर में रहे तो शहर ऐसा क्यौ है? गाँव में रहे तो गाँव ऐसा क्यौं है? लोग ऐसे क्यौं हैं? जनसंख्या इतनी कि काबू में नहीं?रोजगार के अवसर कम से कम,जो नौकरी कर रहे हैं मंदी के डर से कब निकाल दिये जांय इसी में उलझे रहते है तो सुकून है कहां ? जांय कहा?

हम वाकई कुछ वैसे हो गये है कि अगर बरसात में घर की छत चू रही है तो रिसते पानी के आगे डब्बा लगा देंगे बाल्टी लगा देंगे कुछ ज़्यादा पानी का रिसाव हो गया तो ड्रम लगा देंगे पर पानी जहां से रिस रहा है उसे बन्द करने का उपाय नहीं तलाशेंगे । तो ऐसे क्यौं हो गये हैं हम? बदलाव की लड़ाई तो सभी चाहते हैं पर सब कुछ मन में ही रहता है।

पूरे देश में एक सी शिक्षा पद्यति क्यौं नहीं है, क्यौं बांट रखा है आईसीएससी, सीबीएससी,एसएससी देख रहा हूँ कि सीबीएससी आदि में छात्रों को ९८% नम्बर आते हैं और यू पी दिल्ली और ऊत्तर प्रदेश बिहार में स्कूल कॉलेजों में क्या कोई ९८% नम्बर ला सकता है भला? खैर मैं कुछ और कहना चाहता हूँ इस पर कभी और बात की जायगी ।

नुक्कड़ नाटक करते हुए इलाहाबाद से कोलकाता की तरफ़ जा रहे थे हमने उस दौरान बनारस, मुग़लसराय,कुमारधूबी,धनबाद,आसनसोल,बर्दबान,हावड़ा में अपने नाटकों के प्रदर्शन किये थे ....एक घटना याद आ रही है तब हम.बनारस के में किसी बिजली घर के आस पास ही हम नाटक कर रहे थे नाटक जब खत्म हुआ तो बहुत से दर्शक हमें घेर के खड़े थे कुछ को हमारा अभिनय पसन्द आया तो कुछ थे जो भारतीय राजनीति पर बात कर रहे थे, दर्शकों के बहुत से सवाल थे… कौन हैं आप लोग? आप नाटक क्यौं करते हैं? क्या नाटक से बदलाव लाना चाहते है ? भगत सिंह चन्द्रशेखर आज़ाद की बात भी लोग कर रहे थे बहुत से सवाल थे पर एक घटना उस समय की आज तक मुझे याद है ...सब लोग नाटक के बाद संवाद की स्थिति मे लग रहे थे अभी मैं कुछ लोगों से बात ही कर रहा था क एक आदमी ने मुझे इशारा करके अपने पास बुलाया पास गया उसके पास , उसकी गोद में कुत्ते का पिल्ला था जिसे वो प्यार से सहला रहा था ,आस पास के कुते भी उसके इर्द गिर्द दुम हिला रहे रहे थे वो कुत्तों को बीच बीच बिस्किट खिला रहा था उस आदमी ने जिसकी सफ़ेद दाढ़ी और गंदे कपड़ों को देखकर यही लग रहा था कि अब ये आदमी कुछ चिरकुटई की बात करेगा,मैं भी कुछ अनमने ढंग से खड़ा था उसके पास..... उसने सवाल दागा़ ...."जय प्रकाश नारायण के बारे में तुम लोगों का विश्लेशण क्या है? अभी मैं कुछ बोलने को था कि उसने कहा "जय प्रकाश ने जनता तो धोखा़ दिया है............ इस बात का पता है आपको? .......इस देश में कुछ नहीं हो सकता ......आज़ादी की लड़ाई हम पूरी लड़ भी न पाये थे कि अंग्रेज़ चले गये......हम तो सिर्फ़ देश को आज़ादी दिलाने के लिये लड़े और जैसे तैसे आज़ादी मिल भी गई,गोरे की जगह कालों ने ले लिया बस ....... देश के लिये चल रहा कोई आंदोलन अपनी चरम देख नहीं पाता स्खलित हो जाता, आज़ादी की लड़ाई भी ऐसी ही थी,आज़ादी के बाद किसानों की बेहतरी के लिये नक्सलियों ने लड़ाई छेड़ी हार गये अब वो जंगल में रहते है जनता से कट गये हैं भटक गये हैं...आपातकाल के समय एक मौका भारतीय जनता को मिला था सम्पूर्ण क्रांति की बात करने वाला जय प्रकाश ने जिन्हें नेतृत्व सौपा वो सब नये भारत बनाने के सपने से बहुत दूर थे,और यहीं पर जय प्रकाश ने गलत किया और जनता के सपनों को चकनाचूर कर दिया" मैं सुनता रहा और आज भी समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि क्या में आन्दोलन भी स्खलित होते हैं ?

उस बूढ़े की बात पर गौर करें तो आपातकाल के बाद आज तक इस देश में बदलाव की लड़ाई ऐसी नहीं हुई जिसमें पूरा देश जुड़ा नज़र आया हो...देश भी इतना बड़ा है... कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत इतना अलग है कि एक मुद्दा तो इन्हें जोड भी नहीं पायेगा......तो क्या हम टुकड़ों में अपनी लड़ाई लड़ भी पायेंगे? या सारे आंदोलन अपने चरम पर पहुंचने से पहले स्खलित होते जाएंगे .... क्या इसे सच मान लें ?

2 comments:

नवनीत नीरव said...

Sahi baat hai ki aapatkal ke baad dehs mein koi bada aandolan nahi hua hai.par jo grihyudh ki sthiti bani hui kya wo kafi nahi hai.Maowadion, naxaliyon,bodo....najane kitane dal swatantrata ki mang kar rahe hain.Ab aap hi bataiye jab sarkar inko kaboo karne aur hal dhoondhne mein vifal rahi hai to kya aapatkal ke samay jaisa aandolan nyaysangat hoga.
Navnit Nirav

अफ़लातून said...

जेपी को याद तो किया ! समीक्षा भी करनी चाहिए |

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बचपन की सुहानी यादों की खुमारी अभी भी टूटी नही है.. जवानी की सतरंगी छाँह आज़मगढ़, इलाहाबाद,बलिया और दिल्ली मे.. फिलहाल 24 वर्षों से मुम्बई मे.. मनोरंजन चैनल के साथ रोजी-रोटी का नाता......

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